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Devraha Baba और Indira Gandhi के कनेक्शन की वो रहस्यमय कहानी, जिसके बाद कांग्रेस पार्टी को मिला ‘हाथ’ वाला सिंबल

sampurantoday by sampurantoday
February 21, 2023
in देश-दुनिया
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Devraha Baba और Indira Gandhi के कनेक्शन की वो रहस्यमय कहानी, जिसके बाद कांग्रेस पार्टी को मिला ‘हाथ’ वाला सिंबल
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ओमप्रकाश अश्क, पटना: अंग्रेजों से देश को आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए कांग्रेस की स्थापना हुई थी। आजादी मिली तो देश की यह प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गयी। उसके बाद से कांग्रेस में समय-समय पर टूट होती रही और इसका चुनाव चिह्न बदलता रहा। अभी कांग्रेस का चुनाव चिह्न पंजा है। कांग्रेस का चुनाव चिह्न पंजा किसके दिमाग की उपज है, यह शायद बहुतेरे लोगों को मालूम न हो। इसकी एक रोचक कहानी है। हालांकि पंजा चुनाव चिह्न के पहले कांग्रेस के दो और चुनाव चिह्न भी रहे। कभी गाय-बछड़ा और जोड़ा बैल भी कांग्रेस के चुनाव चिह्न होते थे। इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में इमरजेंसी लगा दी। इमरजेंसी की बुनियाद 1974 में शुरू हुए छात्र आंदोलन से पड़ी, जिसे नेतृत्व देकर जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्रव्यापी बना दिया था। इमरजेंसी का खामियाजा 1977 में हुए लोकसभा के चुनाव में इंदिरा गांधी को करारी हार के रूप में भोगना पड़ा। कांग्रेस की इतनी बुरी हार हुई कि अब उसके पुनर्जीवित होने पर लोगों को संदेह था। लेकिन चुनाव चिह्न बदलते ही अगले चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त ढंग से वापसी की।

इंदिरा गांधी पहुंच गयीं बाब की शरण में

लोकसभा के चुनाव में बुरी तरह मात खाने के बाद बाद कांग्रेस में मायूसी थी। हार इतनी बुरी हुई थी कि कांग्रेस के सर्वाइवल का कोई रास्ता किसी को सूझ नहीं रहा था। हार के कारण तो पता थे, लेकिन इसे कैसे नया जीवन मिले इस पर कांग्रेस में लगातार मंथन चल रहा था। उसी दौरान कांग्रेस के किसी नेता के दिमाग में यह बात आयी कि छवि बदलने के लिए क्यों न पार्टी का सिंबल बदल दिया जाये। इसके साथ ही उस नेता ने इंदिरा गांधी को उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में रहने वाले सिद्ध संत देवरहा बाबा के दर्शन की सलाह दी थी।

आशीर्वादी हाथ बन गया चुनाव चिह्न

अपने करीबियों की सलाह पर इंदिरा गांधी देवरहा बाबा के दर्शन के लिए उत्तर प्रदेश के एक जिला मुख्यालय देवरिया से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर उनके आश्रम पर गयीं। बाबा से जो भी मिलने जाता था, उसे वे हाथ उठा कर आशीर्वाद देते थे। उन्होंने इंदिरा गांधी को भी दर्शन के बाद उसी अंदाज में हाथ उठा कर आशीर्वाद दिया। बताया जाता है कि वहां से लौटने के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न गाय-बछड़ा की जगह पंजा करने के लिए चुनाव आयोग से आग्रह किया। आयोग ने पंजा चुनाव चिह्न कांग्रेस को आवंटित कर दिया। वही चुनाव चिह्न आज तक चल रहा है। 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जिस तरह दुर्गति हुई थी, उससे किसी को अनुमान नहीं था कि वह फिर से उठ पाएगी। देवरहा बाबा के आशीर्वाद और पंजा चुनाव चिह्न मिलने के ढाई साल बाद हुए लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी ने पूरे दमखम से सत्ता में वापसी की थी।

टूटती रही कांग्रेस, बदलता रहा इसका चुनाव चिह्न

आजादी के बाद से कांग्रेस का चुनाव चिह्न कई बार बदला। आरंभ में इसका चुनाव चिह्न जोड़ा बैल था। इंदिरा गांधी 12 नवंबर 1969 को कांग्रेस से निकाल दी गयीं। तब उन्होंने कांग्रेस (आर) नाम की पार्टी का गठन किया। कांग्रेस (आर) का चुनाव चिह्न गाय-बछड़ा था। कांग्रेस (आर) ही बाद में कांग्रेस (आई) बन गयी। कांग्रेस का गठन 28 दिसंबर 1885 को हुआ था। इसकी स्थापना अंग्रेज एओ ह्यूम ने की थी। कांग्रेस के पहले अध्यक्ष व्योमेशचंद्र बनर्जी बने थे। जिस समय कांग्रेस की स्थापना हुई, उस समय इसका उद्देश्य अंग्रेजों की गुलामी से भारत की मुक्ति थी। आजादी मिलने के बाद कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गयी। आजादी मिलने के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि कांग्रेस के गठन का उद्देश्य पूरा हो गया। अब इसे खत्म कर देना चाहिए। कांग्रेस विरोधी लोग आज भी महात्मा गांधी की उस बात को अक्सर दोहराते रहते हैं।

1977 में कांग्रेस का जो हाल था, वही 1984 में विपक्ष का था

इंदिरा गांधी की 1984 हत्या के बाद तो कांग्रेस इस कदर उभरी कि विपक्ष का सूपड़ा साफ हो गया। राजीव गांधी के नेतृत्व में हुए लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को एकतरफा बहुमत मिला। हालांकि राजीव गांधी की सरकार में रक्षा मंत्री रहे वीपी सिंह ने बोफोर्स तोप घोटाले को लेकर बगावत कर दी और कांग्रेस को 1998 में सत्ता से बाहर होना पड़ा। वीपी सिंह ने कांग्रेस छोड़ कर जनमोर्चा नाम की नयी पार्टी बनायी। भाजपा और वामपंथी दलों के सहारे वे प्रधानमंत्री बन गये। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने पर बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और वीपी संह की सरकार गिर गयी। जनमोर्चा भी बिखर गया। जनमोर्चा के टूटने पर जनता दल, जनता दल (यू), राजद, जद (एस), सपा जैसे कई दल अस्तित्व में आये।

कई नेताओं ने अपने दल बना लिये

समय-समय पर कांग्रेस से निकल कर कई नेताओं अपने अलग दल बना लिये। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, आंध्रप्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), छत्तीसगढ़ में स्व. अजीत जोगी की जनता कांग्रेस, बीजू जनता दल जैसे दल तो आज भी हैं। कई और दल भी बने, पर समय के साथ मिट गये। चौधरी चरणसिंह ने लोकदल बनाया, जो राष्ट्रीय लोकदल के नाम से आज भी है। कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी पार्टी बनाने वाले नेताओं में कुछ तो बाद में कांग्रेस में लौट आए। प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, माधव राव सिंधिया, नारायणदत्त तिवारी, पी. चिदंबरम, तारिक अनवर ऐसे कुछ प्रमुख नाम हैं, जो कांग्रेस छोड़ गए, लेकिन बाद में लौट आए। ममता बनर्जी, शरद पवार, जगन मोहन रेड्‍डी, मुफ्ती मोहम्मद सईद जैसे नेताओं ने कांग्रेस से निकलने के बाद अब भी अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा बने हुए हैं।

आइए, जानते हैं सिद्ध संत देवरहा बाबा के बारे में

देवरहा बाबा ने जीते जी न अपने जप-तप और सिद्ध संत होने का कभी कोई दावा किया और न किसी को उनकी उम्र के बारे में कोई जानकारी रही। लोग बताते हैं कि उनकी सबसे बड़ी खूबी होती थी कि वे बिना बताये लोगों के मन की बात जान लेते थे। उनका नाम देवरहा बाबा शायद इसलिए पड़ा कि वे उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में रहते थे। उनकी उम्र का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन उनके भक्त 250 से 500 साल उम्र बताते हैं। 19 जून 1990 को वे इस संसार से प्रयाण कर गये थे। लोग तो यह भी बताते हैं कि वे पानी की धार पर भी चलते थे। बाबा के चमत्कार की चर्चा इतनी थी कि 2011 में जार्ज पंचम भी उनके दर्शन के लिए भारत आए थे। देश के दिग्गज राजनेता उनके भक्त थे। ऐसे लोगों में पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद के अलावा अटल बिहारी वाजपेयी, मुलायम सिंह यादव, जगन्नाथ मिश्र जैसे कई बड़े नेता शामिल थे। इसी क्रम में इंदिरा गांधी भी बाबा का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम आयी थीं।

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