अयोध्या। श्रीराम कहीं आते-जाते नहीं हैं। वह शाश्वत-सनातन-नित्य नूतन हैं। भक्तों के हृदय में हैं, जो शबरी की तरह युगों तक प्रतीक्षा कर सकते हैं और कभी-कदाचित श्रीराम अव्यक्त से व्यक्त होते हैं। सोमवार को ऐसा ही दुर्लभ अवसर था, जब नवनिर्मित मंदिर के गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के साथ रामलला की आंखों पर बंधी पट्टी खुली।
बोलती आंखें उन लोगों को गलत सिद्ध कर रही थी, जो यह कहते हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता और उन लोगों को आश्वस्त कर रही थी, जो आवाज में असर के लिए आकुल-अभीप्सित होते हैं। इस चमत्कार के लिए रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से लेकर रामलला की प्रतिमा बनाने वाले अरुण योगीराज को शत-प्रतिशत अंक देने होंगे।
तीन मूर्तिकारों को किया गया था चयनित
ट्रस्ट ने न केवल अनेक चरण की जांच-परख के बाद मूर्ति निर्माण के लिए अनेक बढ़े-चढ़े मूर्तिकारों के बीच योगीराज सहित दो अन्य कलाकारों को मूर्ति निर्माण के लिए चयनित किया, बल्कि आस्था के इस अति महनीय केंद्र पर स्थापित करने के लिए निर्मित तीन प्रतिमा में से इस प्रतिमा का चुनाव किया।
चिर स्वप्न साकार करने वाले नवनिर्मित मंदिर के अनुरूप रामलला की प्रतिमा का चयन आसान नहीं था। ट्रस्ट को रामायण एवं रामचरितमानस में वर्णित श्रीराम के बाल स्वरूप के वर्णन से सहायता मिली। इस वर्णन के हिसाब से रामलला को अति मानवीय चेतना और श्यामवर्णी अलौकिक आभा के साथ पांच वर्षीय राजपुत्र के रूप में ढाले जाने का निर्णय किया गया।
सोमवार को गर्भगृह से यह निर्णय पूरी संभावना के साथ फलीभूत हुआ। गत माह ही निर्मित की जा चुकी रामलला की प्रतिमा सोमवार को चैतन्य-चिन्मय विग्रह का रूप ले चुकी है और रामलला मनोहारी वस्त्रों, विविध श्रृंगार और आभूषणों से विभूषित हो चुके हैं। घुंघराले बाल के ऊपर मुकुट चमक रहा है।
माथे पर पन्ना और हीरे का रामानंदीय तिलक
आस्था के अतिरक्त कला की दृष्टि से भी इसे देखना रोचक है। एक ओर प्रतिमा को जीवंतता देने वाली बालों की लट का सूक्ष्म अंकन है, दूसरी ओर मुकुट। यह किसी राजा के दर्प का परिचायक न होकर लोकरंजक और अपार संभावनायुक्त बालक के सहज प्रभामंडल की तरह सज्जित है।
माथे पर पन्ना और हीरे का रामानंदीय तिलक, कानों में कुंडल, मुक्ताहार, बाजूबंद, करधन, पैजनिया, रेश्मी पीतांबरी आदि से सज्जित होकर अपार्थिव-अलौकिक रामलला भक्तों के और करीब प्रतीत होते हैं। भक्ति भी उन पर न्योछावर है।
रामलला के सम्मुख नतमस्तक होने वालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 140 करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते हुए शामिल हैं। उनके अतिरिक्त इस अवसर के अन्य हजारों अतिथि भी अपने आभामंडल के अनुरूप देश का ही प्रतिनिधित्व करते हुए रामलला के सम्मुख समर्पित हुए।
सार्थक हुआ सुविचारित ऊंचाई का प्रयास
रामलला की प्रतिमा की ऊंचाई भी रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सामने विचारणीय विषय था। अंदेश यह था कि जरा सी चूक किए-कराए पर पानी फेर सकती है। इस पर पूरा जोर था कि भक्तों को रामलला का दर्शन स्पष्टता से हो सके। भक्तों के हिसाब से यदि रामलला कुछ नीचे हुए तो भी और यदि ऊंचे हुए तो भी संकट था।
रामलला को इस ऊंचाई पर रखने का प्रयास था कि भक्त न केवल स्पष्टता से दर्शन कर सकें, बल्कि भक्त-भगवान का दृष्टि संबंध भी स्थापित हो सके। ऐसा करना तब और कठिन था, जब प्रत्येक वर्ष राम जन्मोत्सव के अवसर पर विग्रह के ललाट का सूर्य की रश्मियों से अभिषेक भी सुनिश्चित कराना हो।
वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों के सुझाव के बाद रामलला के विग्रह की ऊंचाई चार फीट तीन इंच और विग्रह के आसन की ऊंचाई एक फीट छह इंच तय की गई। सोमवार को रामलला के सहज दर्शन और उनसे दृष्टि संबंध का सुलभ अवसर इस प्रयास की सार्थकता भी प्रमाणित करने वाला रहा।